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सूर्यवंश की शाखाएँ एवं उपशाखाएँ

सूर्यवंश की शाखाएँ एवं उपशाखाएँ गहलौत क्षत्रिय गहलोत वंश के आदि पुरुष गुह्यदत्त हुए है जिनके नाम पर यह वंश चला। एकमत के अनुसार गुजरात के राजा शिलादित्य के पुत्र केशवादित्य से यह वंश चला। गह्वर गुफ़ा में केशवादित्य के जन्म होने के कारण इस वंश का नाम गहलौत पड गया। एक दूसरे मत के अनुसार इस वंश के आदि पुरुष गुहिल थे। गोत्र - बैजपाय गौतम, कश्यप; कुलदेव - वाणमता; वेद - यजुर्वेद; नदी- सरयू शाखाएं अहाडिया मांगलिमा पीपरा सिसोदिया कछवाहा क्षत्रिय गोत्र - गौतम, कुलदेवी - दुर्गा, वेद - सामवेद, नदी- सरयू। शाखाएं इनकी तेरह मुख्य शाखाओं एवं उपशाखाओं का उल्लेख मिलता है। राठौर गोत्र- 'राजपूताना' कश्यप पूर्व में, अत्रि दक्षिण भारत में तथा बिहार में शंडिल्य। वेद - सामवेद, देवी- दुर्गा। शाखाएं इस वंश की 24 शाखाओं का उल्लेख मिलता है। निकुम्म क्षत्रिय गोत्र - वशिष्ठ तथा भारद्वाज। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि एवं सांकृति। कुल देवि - कालिका। वेद - यजुर्वेद। नदी - सरयू। श्री नेत क्षत्रिय कुछ लोग इन्हें निकुम्म की शाखा मानते हैं। गोत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, बृहस्पति, ...

युग

युग युग, हिंदु सभ्यता के अनुसार, एक निर्धारित संख्या के वर्षों की कालावधि है। ब्रम्हांड का काल चक्र चार युगों के बाद दोहराता है। हिन्दू ब्रह्माण्ड विज्ञान से हमे यह पता चलता है की हर ४.१-८.२ अरब सालों बाद ब्रम्हांड में जीवन एक बार निर्माण एवं नष्ट होता है। इस कालावधि को हम ब्रह्मा का एक पूरा दिन (रात और दिन मिलाकर) भी मानते है। ब्रह्मा का जीवनकाल ४० अरब से ३११० अरब वर्षों के बीच होता है। काल के अंगविशेष के रूप में 'युग' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद से ही मिलता है (दश युगे, ऋग्0 1.158.6) इस युग शब्द का परिमाण अस्पष्ट है। ज्यौतिष-पुराणादि में युग के परिमाण एवं युगधर्म आदि की सुविशद चर्चा मिलती है। वेदांग ज्योतिष में युग का विवरण है (1,5 श्लोक)। यह युग पंचसंवत्सरात्मक है। कौटिल्य ने भी इस पंचवत्सरात्मक युग का उल्लेख किया है। महाभारत में भी यह युग स्मृत हुआ है। पर यह युग पारिभाषिक है, अर्थात् शास्त्रकारों ने शास्त्रीय व्यवहारसिद्धि के लिये इस युग की कल्पना की है। युग आदि का परिमाण  मुख्य लौकिक युग सत्य (उकृत), त्रेता, द्वापर और कलि नाम से चार भागों में (चतुर्धा) विभक्त है। इस युग के...

मन्वन्तर

मन्वन्तर मन्वन्तर, मनु, हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु। प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है। मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहतीं हैं, (जातियां चलतीं हैं, ना कि उस जाति के प्राणियों की आयु मनु के बराबर होगी). उन मनु की मॄत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो कि फ़िर से सभी सृष्टि करते हैं। इसके साथ साथ विष्णु भी आवश्यकता अनुसार, समय समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं। इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं। चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र और वैदिक समयरेखा के नौसार होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है, जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता ...

सप्तऋषि

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 सप्तर्षि सप्तर्षि (संस्कृत से: सप्तर्षि सप्तारि, एक संस्कृत द्विगु जिसका अर्थ है "सात संतों") सात ऋषि हैं जो वेदों और हिंदू साहित्य में कई स्थानों पर प्रचलित हैं। वैदिक संहिता कभी भी इन ऋषियों को नाम से नहीं बताते हैं, हालांकि बाद में वेदिक ग्रंथ जैसे ब्राह्मण और उपनिषद ऐसा करते हैं। वे वैदिक धर्म के कुलपति के रूप में वेदों में माना जाता है सात ऋषियों की सबसे प्रारंभिक सूची जैमिनीनी ब्रह्मा 2.218-221 द्वारा दी गई है: अगस्ती, अत्री, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नी, वाशिष्ठ और विश्वमित्र। इसके बाद बृहदारणिक उपनिषद 2.2.6 से थोड़ा अलग सूची के साथ: गौतम और भारद्वाज, विश्वमित्र और जमदग्नी, वशिष्ठ और कश्यप, अत्री और भृगु। दिवंगत गोपाथ ब्राह्मण 1.2.8 में वसिष्ठ, विश्वमित्र, जमदग्नी, गौतम, भारद्वाज, गुंगु, अगस्ती, भृगु और कश्यप हैं। वैदिक ग्रंथों में, विभिन्न सूचियां दिखाई देती हैं; इनमें से कुछ ऋषियों को ब्रह्मा के 'मन-जन्म के पुत्र' (संस्कृत: मानस पुत्र, मानस पुत्री) के रूप में मान्यता प्राप्त थी, जो सर्वोच्च के रूप में प्रजापति का प्रतिनिधित्व था। अन्य अभ्यावेदन महेषा या शिव क...